हिंदू धर्म में कालाष्टमी का विशेष महत्व है। यह पर्व भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। कालभैरव को समय के स्वामी और न्याय के देवता माना जाता है। प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। विशेष रूप से मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर) के महीने में मनाई जाने वाली कालाष्टमी को ‘कालभैरव जयंती’ कहते हैं, जो भगवान कालभैरव के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है।
कालभैरव का महत्त्व:
कालभैरव, भगवान शिव का एक उग्र रूप है, जो धर्म, न्याय और समय के नियंत्रक हैं। उनकी पूजा से भक्तों को भय, बाधा, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है। कालभैरव की उपासना से व्यक्ति के जीवन में सुरक्षा, समृद्धि, और न्याय की प्राप्ति होती है।
कालाष्टमी की पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ करें और वहां भगवान कालभैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- भगवान कालभैरव का ध्यान करें और पूजा का संकल्प लें।
- ‘ॐ कालभैरवाय नमः’ मंत्र का जाप करें।
- धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करें और आरती करें।
इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। व्रत के दौरान केवल फलाहार या निर्जला व्रत रखें। भगवान कालभैरव के भजन और कीर्तन गाएं।
पूजन सामग्री:
भगवान कालभैरव की प्रतिमा या चित्र
जल, पंचामृत, और गंगाजल
पुष्प, धूप, दीपक
नैवेद्य (फल, मिठाई, और अन्य भोग)
काला तिल, सरसों का तेल
धूप और अगरबत्ती
अक्षत (चावल), कुमकुम, और चंदन
कालभैरव जयंती:
मार्गशीर्ष महीने में आने वाली कालाष्टमी को विशेष रूप से कालभैरव जयंती कहा जाता है। इस दिन भगवान कालभैरव का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन विशेष पूजा, अनुष्ठान, और जागरण का आयोजन होता है। भक्तगण इस दिन रात्रि जागरण करते हैं और भगवान कालभैरव की आराधना करते हैं।