Highlights
- जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव संसद में आने को तैयार
- अनुच्छेद 124(4) के तहत लोकसभा राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत जरूरी
- पहले भी कई जज इसी प्रक्रिया से हटाए जा चुके हैं
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। खबर है कि आगामी मानसून सत्र में संसद में इस मुद्दे पर प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि विपक्षी दलों के कई सांसद समर्थन देने को तैयार हैं। इस संदर्भ में जरूरी दो-तिहाई बहुमत (two‐thirds majority) की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है।
मुख्य आरोप यशवंत वर्मा के सरकारी आवास (official residence) से बरामद जले हुए नोट (burnt currency notes) का है। मामले की जांच इन‑हाउस कमेटी ने की थी। इसमें पंजाब-हरियाणा, हिमाचल और कर्नाटक हाईकोर्ट के जज शामिल थे। इस शिकायत की बात में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सिफारिश भेजी थी।
हमारे संविधान की अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश को पदमुक्त (impeachment) केवल दुराचार (misconduct) या अक्षमता (incapacity) के आधार पर ही किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में लोकसभा में कम से कम सौ सांसदों (100 MPs) और राज्यसभा में पचास सांसदों (50 MPs) का समर्थन जरूरी होता है। उसके बाद संसद की तीन सदस्यीय जजेस इंक्वायरी कमेटी (Judges Inquiry Committee) जांच करती है और फिर दोनों सदनों में मतदान होता है।
इसी प्रक्रिया से हटाए जा चुके हैं चार जज
पूर्व में चार जज इसी प्रक्रिया में हटाए जा चुके हैं। 1991 में जस्टिस वी. रामास्वामी को पदमुक्त किया गया था। 2011 में जस्टिस सौमित्र सेन और पीडी दिनाकरण को हटाने की कार्रवाई शुरू हुई, लेकिन दोनों ने इस्तीफा दे दिया था। 2015 में जस्टिस जेबी परडीवाला पर भी कार्रवाई के कड़े प्रयास हुए थे।
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अब केंद्र सरकार यह तय करने की तैयारी में है कि प्रस्ताव पहले लोकसभा लाया जाए या राज्यसभा में। दोनों सदनों में राजनीतिक समर्थन की स्थिति अलग‑अलग है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व विपक्ष से लगातार संपर्क में है और समर्थन जुटाने का प्रयास चल रहा है।
समझा जा रहा है कि मानसून सत्र से पहले सरकार इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दे सकती है। अगर बहुमत मिलता है तो जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की राह पूरी हो सकती है। लेकिन अगर समर्थन में कमी आई तो मामला लंबित रह सकता है और अदालत में चुनौतियां आ सकती हैं।