Bihar Voter List Revision को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को लंबी सुनवाई हुई। मामला गर्म इसलिए है क्योंकि चुनाव आयोग (Election Commission) बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा कर रहा है। इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों और आम लोगों में आक्रोश है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची मौजूद थे। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग की ये प्रक्रिया भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है। खास बात ये रही कि कोर्ट ने खुद भी सवाल उठाया कि नागरिकता जांच का अधिकार चुनाव आयोग को किसने दिया, ये तो गृह मंत्रालय का विषय है।
कोर्ट ने उठाया आधार कार्ड पर सवाल
कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब सरकार हर काम में आधार कार्ड मांगती है तो वोटर लिस्ट रिवीजन में इसे क्यों नहीं स्वीकार किया गया? कोर्ट ने पूछा कि माता-पिता के दस्तावेज मांगना किस कानून में लिखा है?
इस पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार वोटर बनने के लिए भारतीय नागरिक होना जरूरी है, इसलिए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकता जांच गृह मंत्रालय का विषय है न कि चुनाव आयोग का।
EC ने भरोसा दिलाया: बिना सुने नाम नहीं हटाएंगे
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिया कि बिना सुनवाई का मौका दिए किसी को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा। आयोग ने कहा कि वोटर को नोटिस भेजा जाएगा और उसे अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा।
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विपक्षी नेताओं ने दी चुनौती
चुनाव आयोग के इस कदम को लेकर देश के कई विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इनमें कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी, जेएमएम, सीपीआई एमएल और अन्य दलों के नेता हैं।
- महुआ मोइत्रा (TMC)
- मनोज झा (RJD)
- केसी वेणुगोपाल (Congress)
- सुप्रिया सुले (NCP – शरद पवार)
- डी राजा (CPI)
- हरिंदर मलिक (SP)
- अरविंद सावंत (Shiv Sena UBT)
- सरफराज अहमद (JMM)
- दीपांकर भट्टाचार्य (CPI ML)
बता दें कि बिहार में चुनाव आयोग ने वोटर रिवीजन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है। लोगों को अपने माता-पिता के कागज, भूमि के दस्तावेज, जन्म प्रमाण पत्र और कई बार राजस्व दस्तावेज भी लाने को कहा जा रहा है।