उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य कारण या दबाव, क्या है इस्तीफे के पीछे की सच्चाई

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा

21 जुलाई की शाम जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंपते हुए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। लेकिन राजनीतिक हलकों में यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या स्वास्थ्य ही उनकी विदाई का असली कारण था या फिर सत्ता पक्ष के साथ बढ़ते मतभेदों ने उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर किया।

धनखड़ का उपराष्ट्रपति कार्यकाल हमेशा मुखर और स्वतंत्र रुख से पहचाना गया। हाल ही में न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा लाए गए प्रस्ताव को स्वीकार करना विवाद की जड़ बना। सरकार चाहती थी कि इस प्रस्ताव पर फिलहाल कदम न बढ़ाया जाए, लेकिन धनखड़ ने संविधान और सदन की गरिमा को प्राथमिकता देते हुए इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। बताया जाता है कि सरकार ने उन्हें ऐसा न करने के लिए तीन बार कहा था, लेकिन वे अपने निर्णय पर अडिग रहे।

यह घटनाक्रम सत्ता पक्ष के लिए अप्रत्याशित था। इससे पहले भी राज्यसभा की एक अहम बैठक में सत्ता पक्ष के शीर्ष नेताओं की अनुपस्थिति ने दोनों पक्षों के बीच तनाव को बढ़ाया था। विपक्षी नेताओं से धनखड़ की बातचीत और उनके स्वतंत्र निर्णय लेने के तरीके ने सत्ता पक्ष को लगातार असहज किया। धीरे-धीरे यह असहमति उस स्तर तक पहुंच गई जहां विश्वास का संकट स्पष्ट नजर आने लगा।

धनखड़ का रख्त रुख बना इस्तीफे की वजह?

धनखड़ ने कई मौकों पर संवैधानिक गरिमा की रक्षा के लिए सख्त रुख अपनाया। उनके इस्तीफे के बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि यह कदम संवैधानिक पदों की स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है। तृणमूल कांग्रेस ने तो यहां तक दावा किया कि धनखड़ पर सत्ता पक्ष की ओर से इस्तीफे का दबाव था। सत्ता पक्ष इन आरोपों को खारिज करता रहा, लेकिन विपक्षी दल इसे सत्ता और संविधान के बीच टकराव का सबूत मान रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह बहस तेज कर दी है कि क्या देश में संवैधानिक पद सचमुच स्वतंत्र रूप से काम कर पा रहे हैं। धनखड़ का इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों के आवरण में सत्ता संघर्ष और संस्थागत दबाव की ओर इशारा करता है। यह केवल एक व्यक्ति का पद छोड़ना नहीं, बल्कि संवैधानिक संतुलन और राजनीतिक विश्वास के बीच बढ़ती खाई का संकेत है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकरण ने उपराष्ट्रपति के पद की संवैधानिक स्वायत्तता और राजनीतिक प्रभाव के बीच की जटिलताओं को उजागर कर दिया है। सवाल अब यह है कि क्या आने वाले समय में इस पद पर बैठने वाला कोई भी व्यक्ति बिना सत्ता के दबाव के काम कर पाएगा या फिर यह पद भी राजनीतिक समीकरणों का हिस्सा बनकर रह जाएगा।