उत्तर प्रदेश के मथुरा में बांके बिहारी कॉरिडोर के निर्माण के लिए मंदिर के फंड से 500 करोड़ रुपये खर्च करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। यूपी सरकार ने इस काम के लिए श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश लाया है जिसमें सीधे मंदिर के फंड से कॉरिडोर बनवाने का प्रावधान है। मंदिर प्रशासन ने इस कदम का विरोध किया है और मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा।
शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार और मंदिर ट्रस्ट को वार्ता से समाधान निकालने की सलाह दी। बेंच ने कहा, “भगवान कृष्ण पहले मध्यस्थ थे। कृपया इस मामले को बातचीत से सुलझाइए।” सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि इस विषय में अध्यादेश की संवैधानिक वैधता की जांच पहले उच्च न्यायालय को करनी चाहिए थी। बेंच ने सवाल उठाया कि अदालत को इतनी जल्दी क्यों निर्णय देना पड़ा।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची ने मौखिक रूप से 15 मई के उस आदेश को वापस लेने का प्रस्ताव रखा था जिसमें उस समय सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को मंदिर फंड इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी। बेंच ने कहा, “हम इसका प्रस्ताव देते हैं। पहले का जजमेंट अभी स्थगित रहेगा।”
अदालत ने सुझाव दिया कि इस विवाद में हाई कोर्ट के पूर्व जज और सीनियर रिटायर्ड जिलाधीश वार्ता कर सकते हैं क्योंकि वे मैनेजमेंट ट्रस्टी भी हैं। जब तक अध्यादेश को लेकर अंतिम फैसला नहीं होता, तब तक एक अंतरिम कमेटी ही मंदिर के मामलों का संचालन करेगी। बेंच ने कहा कि यह समिति फंड का सीमित उपयोग कर सकेगी।
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सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि मंदिर ट्रस्ट यूपी सरकार के अध्यादेश को चुनौती दे सकता है और मांग कर सकता है कि मंदिर के प्रबंधन और फैसलों का अधिकार वही संभाले। इस मामले में यूपी सरकार की ओर से पेश किए गए वकील के.एम. नटराज ने कहा है कि वे मंगलवार तक जवाब देंगे।