भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई के पहले महाराष्ट्र दौरे पर उस समय विवाद खड़ा हो गया जब उन्हें एयरपोर्ट पर रिसीव करने कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा। मुंबई में आयोजित सम्मान समारोह के दौरान CJI गवई ने मंच से ही अपना आक्रोश ज़ाहिर करते हुए कहा – “मैं सम्मान का भूखा नहीं हूं, लेकिन यह व्यवहार दर्शाता है कि संवैधानिक पदों का कितना सम्मान होता है।”
CJI गवई ने आगे कहा कि वह तीनों संवैधानिक स्तंभों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच आपसी सम्मान में विश्वास रखते हैं। लेकिन इस दौरे में जिस तरह से महाराष्ट्र सरकार की ओर से प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
दरअसल CJI के मुंबई आगमन पर राज्य के मुख्य सचिव, डीजीपी और पुलिस कमिश्नर में से कोई भी उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट पर नहीं पहुंचा। यही नहीं उन्हें उनकी यात्रा के दौरान भी वैसा सरकारी सम्मान नहीं मिला जैसा कि एक देश के सर्वोच्च न्यायिक पदाधिकारी को मिलना चाहिए।
घटना के बाद मामला तूल पकड़ने लगा। मीडिया और सोशल मीडिया पर CJI गवई के बयान वायरल होने लगे। दबाव में आकर महाराष्ट्र के तीनों शीर्ष अधिकारियों ने उनसे व्यक्तिगत रूप से माफी मांगी और उन्हें एयरपोर्ट पर खुद विदा भी किया।
CJI गवई के इस बयान ने एक बार फिर संविधान के तीनों स्तंभों के बीच संबंधों की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। उनका कहना था कि “संविधान सबसे ऊपर है, व्यक्ति नहीं। अगर हम एक-दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे तो लोकतंत्र कमजोर होगा।”