बिहार के चुनावी समर में इस बार पुराने मुद्दों पर बात नहीं की जा रही बल्कि नए नारे गढ़े जा रहे हैं। बीते पांच से दस वर्षों में समय-समय पर उठाए गए राजनीतिक मुद्दे इस चुनाव में गुम होते दिख रहे हैं। वहीं आरक्षण के विषय को दोनों गठबंधन अपने-अपने तरह से लोगों के बीच प्रस्तुत कर रहे।
डर के आगे जीत
पेय पदार्थ की एक कंपनी के विज्ञापन का बहुत चर्चित स्लोगन है- डर के आगे जीत है, पर बिहार में राजनीतिक दलों ने इसके भाव को बदल दिया है। उनके मुताबिक-डर के नाम पर ही जीत है। अपनी जीत के लिए राजनीतिक दलों ने डर को केंद्रीय चुनावी मुद्दा बना दिया है। पांच-10 वर्ष के भीतर समय-समय पर उभरे राजनीतिक मुद्दे गुम हो गए।
मोदी को देनी पड़ी सफाई
बदले राजनीतिक समीकरण में स्थिति ऐसी बनी कि राजग को फिर से सफाई की मुद्रा में आना पड़ा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत पार्टी के कई बड़े नेताओं को बार-बार यह कहना पड़ा कि आरक्षण किसी भी कीमत पर खत्म नहीं होगा। पलटवार के रूप में राजग ने विपक्षी दलों के मुस्लिम प्रेम के मुद्दे को उठा लिया और यह आरोप लगाया कि आईएनडीआईए की सरकार बनी तो एससी, एसटी व ओबीसी का आरक्षण काटकर मुस्लिमों को दे दिया जाएगा।
यह राजग का केंद्रीय विषय है।
नेता बड़े, मझोले या छोटे हों, अपने चुनावी भाषण में राजद शासनकाल में अपराधियों के बढ़े मनोबल की चर्चा करना नहीं भूलते हैं। कहते हैं-राजद को राजनीतिक ताकत मिली तो शाम के बाद पहले की तरह घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सभाओं में बड़ी उम्र के लोगों से आग्रह करते हैं कि वे अपनी संतानों को राजद शासनकाल के बुरे माहौल के बारे में जरूर बताएं। उन्हें भविष्य के लिए आगाह करें।
बिहार को विशेष राज्य दर्जा
10 वर्ष पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अभियान शुरू करने वाले नीतीश कुमार इस समय चुनावी सभाओं में भूल से भी इसकी चर्चा नहीं करते हैं। आईएनडीआईए के घटक दल राजद के घोषणा-पत्र में इसे जगह मिली है, पर यह विपक्ष के सबसे बड़े प्रचारक तेजस्वी यादव के भाषण के केंद्र में नहीं है। एक दिन में 8-10 सभाओं का रिकॉर्ड बना रहे तेजस्वी के पास विशेष दर्जा की चर्चा करने के लिए समय नहीं मिलता है। चुनाव में जीत के लिए राजद अगड़े-पिछड़े के अतीत के विभाजन को तीखा करना चाहता है। उसके लिए यह भाजपा के धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण का उत्तर है।
श्रमिकों का पलायन बड़ा चुनावी मुद्दा
2005 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही श्रमिकों का पलायन बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। उस वर्ष राज्य में पहली बार राजग की सरकार बनी। उसके पांच वर्ष बाद तक नीतीश कुमार के भाषण में प्राथमिक विषय यही मुद्दा रहा। कहते थे कि बिहार ऐसा राज्य बनेगा, जहां दूसरे राज्य के लोग काम करेंगे। हमारे राज्य के युवाओं-नागरिकों को कहीं और जाकर काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।