नई दिल्ली। इस बार के लोकसभा में बरेली सीट से बसपा प्रत्याशी नहीं होने से क्या असर पड़ेगा? वर्ष 2014 उस समय बसपा प्रत्याशी को 1.06 लाख और सपा को 2.77 लाख मत मिले थे। इसके बाद 2019 के चुनाव में बसपा गठबंधन में गई तब सपा को 3.97 लाख मत मिले थे। इस बार बसपा किसी गठबंधन में नहीं है। पार्टी का अपना आधार वोट बैंक है, वह किस ओर जाएगा, इसकी माथापच्ची के बीच भाजपा और सपा के बीच सीधे मुकाबले का मैदान बन चुका है।
सबका साथ-सबका विकास’ का नारा लगाने वाली भाजपा कुछ अतिरिक्त की आस में जुट गई। दूसरी ओर सपा को पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले में ज्यादा दम पड़ने की उम्मीद है। दोनों पार्टियों के नेता स्वीकारते हैं कि बसपा का मैदान से बाहर होना उनके लिए अवसर है।
छत्रपाल सिंह गंगवार प्रत्याशी
भाजपा ने इस बार छत्रपाल सिंह गंगवार और सपा-कांग्रेस गठबंधन ने प्रवीण सिंह ऐरन को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व में तीसरे और चौथे बड़े दल के तौर पर मैदान में कांग्रेस व बसपा होती थी। ये दल त्रिकोणीय आसार बनाते थे, मत विभाजन की आशंका भी बनी रहती थी। पिछली बार के चुनाव में भाजपा के संतोष गंगवार जीते थे। दूसरे स्थान पर सपा-बसपा गठबंधन के भगवत सरन गंगवार थे। तीसरे स्थान पर कांग्रेस को 74 हजार मत मिले थे।
2014 चुनाव में भाजपा की हुई थी जीत
वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी। दूसरे स्थान पर 2.77 लाख मत पाकर सपा रही थी। बसपा को एक लाख और कांग्रेस को 84 हजार मत मिले थे। वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस जीती, दूसरे स्थान पर भाजपा थी। उस दौरान बसपा मजबूती से उबरी थी, उनके प्रत्याशी को 1.81 लाख मत मिले थे, जबकि सपा को 73 हजार। वर्ष 2004 के चुनाव में भाजपा जीती, लेकिन बसपा से सीधा संघर्ष हुआ था। उस दौरान दूसरे नंबर पर रही बसपा को 2.10 लाख मत मिले थे। तीसरे स्थान पर कांग्रेस को 1.91 लाख और सपा को 1.20 लाख वोट मिले थे।
दूसरी बार बसपा मैदान में नहीं
वर्ष 1989 के बाद से बरेली संसदीय क्षेत्र के इतिहास में यह दूसरी बार है कि बसपा चाहकर भी मैदान में नहीं। वर्ष 1991 के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी मैदान में नहीं थे। इस बार पार्टी का प्रत्याशी बनने के लिए छोटेलाल गंगवार ने पर्चा भरा, जोकि कमियां पाए जाने पर निरस्त हो चुका।
2024 से पहले की स्थिति
वर्ष 1999 के चुनाव में भाजपा के संतोष जीते थे, उस दौरान छोटेलाल गंगवार सपा प्रत्याशी के रूप में दूसरे स्थान पर थे। कांग्रेस ने 1.27 मत पाकर चुनौती दी थी, जबकि पैर जमा रही बसपा को 69 हजार वोट मिले थे। 1998 में भाजपा जीती, सपा दूसरे स्थान पर थी। तब बसपा के ऐबरन गंगवार ने 48 हजार मत पाए थे।
वर्ष 1996 के चुनाव में मुख्य टक्कर में भाजपा ने सपा को हराया मगर, बसपा और कांग्रेस के वोट मिलाकर 90 हजार से ज्यादा थे। वर्ष 1991 के चुनाव में भाजपा को विजय मिली, लेकिन दूसरे स्थान पर रही कांग्रेस सिर्फ 38 हजार वोट पीछे थी। उस चुनाव में बसपा मैदान में नहीं थी, जनता जल के राशिद अल्वी ने 15 हजार वोट पाए थे।
1989 में कांग्रेस को 45 हजार मतों से हराकर भाजपा प्रत्याशी जीते, तब बसपा ने पहले चुनाव में 7,643 वोट पाए थे। उस दौरान जनता दल के जयदीप बरार ने त्रिकोणीय मुकाबले के आसार पैदा किए थे। उन्हें 82 हजार मत मिले थे।