डॉलर गिरा लेकिन नुकसान सिर्फ अमेरिका को, बाकी दुनिया पर क्यों नहीं असर?

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डॉलर की कीमत

Highlights

  • डॉलर इस साल 10% तक कमजोर हुआ
  • ट्रंप की नीतियों से बढ़े टैरिफ, अमेरिका में महंगाई तेज
  • निवेशकों में अमेरिकी बाजार को लेकर भरोसा कमजोर

अमेरिकी डॉलर (US Dollar) इस साल तेजी से कमजोर हो रहा है और 1973 के बाद यह पहली बार है जब एक ही साल में इतनी बड़ी गिरावट देखी गई है। जून 2025 तक डॉलर की कीमत भारतीय रुपये (Indian Rupee) के मुकाबले 86.60 से घटकर 85 रुपये तक पहुंच चुकी है। इस साल की शुरुआत से डॉलर कई बड़ी करेंसीज़ के मुकाबले करीब 10% तक कमजोर हुआ है।

हालांकि आम तौर पर डॉलर की गिरावट का वैश्विक असर माना जाता है, लेकिन इस बार सबसे ज़्यादा असर अमेरिका (United States) पर ही पड़ता दिख रहा है। जानकारों का कहना है कि इसकी वजह अमेरिका की खुद की ट्रेड पॉलिसी (Trade Policy), खासकर इंपोर्ट टैरिफ (Import Tariffs) में की गई बढ़ोतरी है।

डॉलर की कमजोरी की असली वजह क्या है?
विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की व्यापार नीतियों के चलते चीन, भारत और ब्राजील जैसे देशों से अमेरिका में आने वाला सामान महंगा हो गया है। टैरिफ बढ़ने के कारण आयात महंगा हुआ और अमेरिका में महंगाई (Inflation) बढ़ी। इसका सीधा असर डॉलर की वैल्यू पर पड़ा।

अब निवेशक डॉलर को लेकर सतर्क हो गए हैं। बाजार में गिरावट की आशंका के चलते डॉलर में निवेश करने वाले निवेशक धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे हैं ताकि भविष्य के जोखिम से बचा जा सके।

क्यों सिर्फ अमेरिका को हो रहा है नुकसान?
डॉलर लंबे समय से दुनिया की सबसे सुरक्षित करेंसी मानी जाती रही है। हालांकि अब इस पर भरोसा कमजोर हो रहा है। बाकी देशों के लिए डॉलर की गिरावट से कुछ खास असर नहीं पड़ा है। उन्हें डॉलर में कारोबार महंगा नहीं पड़ रहा, बल्कि यह उनके लिए सस्ता हो गया है।

दूसरी ओर अमेरिका में महंगाई बढ़ने की आशंका है। यदि ये स्थिति बनी रहती है तो वहां की इकोनॉमी पर असर पड़ सकता है। निवेश घटेगा, ग्रोथ स्लो होगी और बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।

अमेरिकी निवेशक क्यों चिंतित हैं?
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन (University of Michigan) के फाइनेंस प्रोफेसर पाउलो पैस्का के मुताबिक, अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी से न केवल आयात महंगे हुए हैं बल्कि निवेशकों का विश्वास भी हिला है। बाजार में अस्थिरता बढ़ने से निवेशकों की प्राथमिकता अब सुरक्षा की तरफ झुक गई है। यानी लोग निवेश की जगह पैसा अपने पास रखना बेहतर मान रहे हैं।

क्या भारत को फायदा हो रहा है?
डॉलर के कमजोर होने से भारत जैसे देशों के लिए अमेरिकी आयात सस्ता हो सकता है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की निर्भरता थोड़ी घट सकती है। लेकिन भारत समेत बाकी देशों के लिए यह स्थायी लाभ नहीं है, क्योंकि ग्लोबल अनिश्चितता सभी अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर सकती है।