भारत के ‘टाइगर मैन’ वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की आयु में निधन, बाघों के संरक्षण के लिए खुद को किया था समर्पित

भारत के प्रसिद्ध वन्यजीव संरक्षणवादी, लेखक और डॉक्यूमेंट्री निर्माता वाल्मीक थापर का 31 मई 2025 को नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उनकी मृत्यु से भारत ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक महान योद्धा को खो दिया है।

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भारत के 'टाइगर मैन' वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की आयु में निधन
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Highlights

  • वाल्मीक थापर का 31 मई 2025 को नई दिल्ली में निधन हुआ।
  • उन्होंने पांच दशकों से अधिक समय तक बाघों के संरक्षण के लिए कार्य किया।
  • थापर ने 'लैंड ऑफ द टाइगर' सहित कई प्रमुख डॉक्यूमेंट्रीज़ में योगदान दिया।

वाल्मीक थापर का 31 मई 2025 को 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें ‘टाइगर मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवन के पांच दशकों से अधिक समय तक भारत के बाघों के संरक्षण के लिए समर्पित किया। उनकी मृत्यु से वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति हुई है।

थापर का जन्म 1952 में नई दिल्ली में हुआ था। उनके पिता रोमेश थापर एक प्रसिद्ध पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार थे और उनकी माँ राज थापर ने राजनीतिक पत्रिका ‘सेमिनार’ की स्थापना की थी। उनकी शिक्षा सेंट स्टीफन्स कॉलेज, दिल्ली से हुई थी। थापर की पत्नी संजना कपूर एक प्रसिद्ध थिएटर कलाकार और निर्देशक हैं और उनके पुत्र का नाम हमीर थापर है।

1970 के दशक में थापर की मुलाकात रणथंभौर टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक फतेह सिंह राठौर से हुई जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। इस मुलाकात के बाद उन्होंने रणथंभौर फाउंडेशन की सह-स्थापना की जो समुदाय आधारित संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

थापर ने बाघों के जीवन और व्यवहार पर कई पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘द सीक्रेट लाइफ ऑफ टाइगर्स’, ‘लिविंग विद टाइगर्स’ और ‘द लास्ट टाइगर’ शामिल हैं। उन्होंने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ (1997) सहित कई प्रमुख वन्यजीव डॉक्यूमेंट्रीज़ में भी योगदान दिया।

थापर ने भारत सरकार की विभिन्न समितियों में सेवा दी जिनमें 2005 की टाइगर टास्क फोर्स शामिल है। उन्होंने वन्यजीव संरक्षण नीतियों में सुधार के लिए लगातार प्रयास किए और वन विभाग की नौकरशाही पर भी सवाल उठाए।

उनकी अंतिम यात्रा 31 मई को दोपहर 3:30 बजे लोधी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में संपन्न हुई। उनकी मृत्यु से भारत ने एक महान वन्यजीव संरक्षक को खो दिया है लेकिन उनका योगदान और विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।