भारत सरकार ने तुर्की के साथ चल रहे अरबों डॉलर के समझौतों और परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी है। यह कदम तुर्की द्वारा पाकिस्तान को सैन्य ड्रोन और अन्य हथियारों की आपूर्ति करने और कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करने के कारण उठाया गया है।
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और तुर्की के बीच द्विपक्षीय व्यापार 10.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था। इसके अलावा अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 तक भारत में तुर्की से कुल 240.18 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आया है। तुर्की की कंपनियां भारत में मेट्रो रेल, सुरंग निर्माण, हवाई अड्डा सेवाएं, शिक्षा, मीडिया और सांस्कृतिक सहयोग जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
उदाहरण के तौर पर 2020 में अटल टनल के इलेक्ट्रोमैकेनिकल हिस्से का कार्य एक तुर्की कंपनी को सौंपा गया था। वहीं 2024 में रेलवे विकास निगम लिमिटेड (RVNL) ने मेट्रो परियोजना के लिए एक तुर्की कंपनी के साथ समझौता किया था।
हालांकि ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ के बाद तुर्की द्वारा पाकिस्तान को सैन्य ड्रोन और अन्य हथियारों की आपूर्ति करने की खबरों ने भारत सरकार को सतर्क कर दिया है। इसके चलते सरकार ने सभी तुर्की परियोजनाओं और समझौतों की गहन समीक्षा शुरू कर दी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार सभी तुर्की परियोजनाओं और समझौतों को फिर से जांच रही है। भले ही वे समझौते समाप्त हो चुके हों।
तुर्की को बयानबाजी पड़ेगा महंगा
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सरकार के इस कदम के पीछे एक बड़ा कारण तुर्की का लगातार कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बयानबाजी करना और पाकिस्तान के साथ उसकी बढ़ती नजदीकियां हैं। अब तक किसी भी परियोजना को औपचारिक रूप से रद्द नहीं किया गया है। लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि भारत अपनी विदेश नीति में जरूरी बदलाव की ओर बढ़ रहा है।
भारत के इस कदम से तुर्की की कंपनियों को भारत में अपने निवेश और परियोजनाओं पर पुनः विचार करना पड़ सकता है। साथ ही यह संदेश भी जाएगा कि भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगा।