अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1957 में तीन सीट से लड़ा था। भारतीय जनसंघ पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था। अटलजी ने पहला चुनाव उत्तर प्रदेश के बलरामपुर, लखनऊ और मथुरा लोकसभा सीट से लड़ा था। इतना ही नहीं इन तीन में से एक सीट पर उन्होंने अपने विरोधी उम्मीदवार के लिए ही वोट मांग लिए। इस वजह से भी इस चुनाव की काफी चर्चा रही।
तीन सीटों पर चुनाव, दो पर मिली हार
दूसरे लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी यूपी की तीन सीटों से चुनाव लड़े। बलरामपुर से वह चुनाव जीत गए लेकिन लखनऊ और मथुरा सीट पर उनकी हार हुई।
अपने विरोधी के लिए ही मांग लिए वोट
मथुरा में उनकी करारी हार हुई लेकिन यह हार उनकी वजह से थी। कहा जाता है कि वाजपेयी यह चुनाव जानबूझकर हारे थे। इस सीट पर अपने विरोधी उम्मीदवार के लिए उन्होंने वोट मांगे।
विरोधी उम्मीदवार का क्यों किया समर्थन
मथुरा सीट पर अटल जी ने अपने विरोधी उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप सिंह के लिए वोट मांगे थे। महेंद्र प्रताप क्रांतिकारी थे और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।
चुनाव हारने के बाद भी बलरामपुर से बना रहा अटल का प्रेम
वाजपेयी की हार की खबर मिलने पर कार्यकर्ता निराश खड़े थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी आवास-कार्यालय से बाहर निकले और निराशा का भाव दूर करने के लिए कार्यकर्ताओं से कहा कि निराश मत हो, मैं फिर चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा। इसके बाद वह वर्ष 1967 में वह वहीं से चुनाव जीते भी। यहां से सीट छोड़ने के बाद भी उनका लगाव यहां के लोगों के प्रति बना रहा।
1962 के बलरामपुर चुनाव का
वयोवृद्ध भाजपा कार्यकर्ता शंभू प्रसाद गुप्ता उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी ने बलरामपुर लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था। उन्होंने कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन रिजवी को हराकर भारतीय जनसंघ का परचम फहराया था। जवाहर लाल नेहरू तब सांसद बने प्रखर वक्ता अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिभा को समझ गए थे। उन्हें लगा कि अटल को हराना मुश्किल होगा, इसी नाते उन्होंने 1962 के चुनाव में सुभद्रा जोशी को अटल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए बलरामपुर भेजा।
राजनीतिक करियर
अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसम्बर 1924 – 16 अगस्त 2018) भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद तीन बार संभाला है, वे पहले 13 दिन के लिए 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक। फिर लगातार 2 साशन; 8 महीने के लिए 19 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999 और फिर वापस 13 अक्टूबर 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे, और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य (पत्र) और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।
2005 से वे राजनीति से संन्यास ले चुके थे और नई दिल्ली में 6-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते थे। 16 अगस्त 2018 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।