चाबहार पोर्ट ( Chabahar Port) के प्रबंधन का दस वर्षों का ठेका भारत को मिल गया है। चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से अमेरिका आग-बबूला हो उठा है। अमेरिका ने कहा कि कोई भी देश जो ईरान के साथ व्यापार सौदे को अंजाम दे रहा है उन्हें संभावित सेंक्शन (प्रतिबंध) के लिए तैयार रहना चाहिए।
सर्बानंद सोनोवाल की उपस्थिति में इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और ईरान के पोर्ट्स एंड मेरिटाइम ऑर्गेनाइजेशन ने इस कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। आईपीजीएल करीब 12 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा, जबकि 25 करोड़ डॉलर की राशि कर्ज के रूप में जुटाई जाएगी। यह पहला मौका है जब भारत विदेश में स्थित किसी बंदरगाह का मैनेजमेंट अपने हाथ में ले रहा है।
समझौते पर हस्ताक्षर
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने भारत-ईरान डील को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, ‘कोई भी जो ईरान के साथ साथ व्यापार सौदों को अंजाम दे रहा है, उन्हें उन संभावित प्रतिबंधों के खतरों के बारे में पता होना चाहिए, जिसके वे करीब जा रहे हैं।’ सोमवार को भारत के शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके ईरानी समकक्ष की मौजूदगी में इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईजीपीएल) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ने दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
ईरान पर प्रतिबंध रहेंगे
पटेल ने कहा कि भारत और ईरान के बीच हुए चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौते से अमेरिका अवगत है, हालांकि, भारत को अपनी विदेश नीति के फैसलों पर अपनी बात रखने का पूरा हक है। उन्होंने आगे कहा, “मैं बस यही कहूंगा कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रहेंगे और हम उन्हें लागू करना जारी रखेंगे।”
अमेरिका और ईरान आमने-सामने
भारत ने ईरान के साथ यह समझौता तब किया है जब अमेरिका और ईरान के संबंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। चाबहार पोर्ट को लेकर अमेरिका का रवैया वैसे कुछ नरम रहता है क्योंकि भारत की तरफ यह तर्क दिया जाता है कि यह पोर्ट चीन के बढ़ते प्रभुत्व का जवाब हो सकता है। बता दें कि पहली बार किसी भारतीय कंपनी को दूसरे देश में बंदरगाह प्रबंधन करने का मौका मिल रहा है। अभी यह ठेका 10 वर्षों का है लेकिन उसे आगे फिर बढ़ाया जा सकता है। यह भारत की सीमा के पास सबसे नजदीकी पोर्ट भी है।
आईपीजीएल और पीएमओ के बीच समझौता
सोमवार को ईरान में इंडियो पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) पोर्ट्स एंड मैरिटाइम आर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान (पीएमओ) के बीच समझौता हुआ। देश में आम चुनाव प्रक्रिया जारी रहने के बावजूद भारत के शिपिंग व पोर्ट मंत्री सर्बानंद सोनोवाल का वहां जाना बताता है कि भारत इस परियोजना को कितना महत्व देता है।
चाबहार बंदरगाह
ओमान की खाड़ी के पास ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह को भारत विकसित कर रहा है। भारत क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह पर ध्यान दे रहा है। इस रास्ते भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच हासिल होगी और पाकिस्तान को बायपास करने में सक्षम होगा। इसके पहले भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान की जरूरत पड़ती थी।
इसके साथ ही इस रणनीतिक बंदरगाह को पाकिस्तान में चीन की मदद से विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह के विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। चाबहार बंदरगाह और ग्वादर के बीच समुद्र के रास्ते सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी है। इसे आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) से जोड़ने की योजना है। 7200 किलोमीटर लंबा ये गलियारा भारत को ईरान, अजरबैजान के रास्ते होते हुए रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ेगा।
चाबहार बंदरगाह का महत्व
चाबहार बंदरगाह का महत्व भारत और ईरान के बीच एक मात्र माध्यम के रूप में इसकी भूमिका से कहीं अधिक है। यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण व्यापार धमनी के रूप में कार्य करता है।’ सोनोवाल ने कहा, ‘इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने से चाबहार बंदरगाह की व्यवहार्यता और दृश्यता पर कई गुना प्रभाव पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘चाबहार न केवल भारत का निकटतम ईरानी बंदरगाह है, बल्कि यह समुद्री दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट बंदरगाह है।